भारत के सविंधान में मुख्य रूप से कितने मौलिक अधिकार हैं?

By :Admin Published on : 16-Dec-2023
भारत

भारतीय संविधान प्रमुख रूप से तीन न्यायपालिका, विधायी शाखा एवं कार्यकारी साखाओं का आधार है। संविधान की सबसे बड़ी विशेषता या अच्छाई इसमें निहित मौलिक अधिकार हैं, जो नागरिकों को उनका हक-अधिकार सुनिश्चित कराते हैं। 

साथ ही, राज्य की शक्ति को भी सीमित करते हैं। मौलिक अधिकार देशवासियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और लोकतंत्र की नीव हैं। चलिए जानते हैं, इन मौलिक अधिकारों के महत्व व प्रकार और उनकी व्याख्या के बारे में।

1. समानता का अधिकार (Right to Equality)

समानता का अधिकार भारतीय संविधान के मूलभूत सिद्धांतों में से एक है। यह अधिकार कानून के अंतर्गत सभी नागरिकों की समानता की गारंटी प्रदान करता है और जाति, धर्म, लिंग, अथवा जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। 

इसमें समान अवसरों की प्राप्ति, सरकारी नौकरियों में आरक्षण और अन्य प्रावधान शामिल हैं, जो समाज के कमजोर वर्गों को आर्थिक व सामाजिक तौर पर मजबूत बनाते हैं।

2. स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)

संविधान में स्वतंत्रता का अधिकार व्यक्तियों को विभिन्न प्रकार की स्वतंत्रताएँ प्रदान करता है, जैसे भाषण और अभिव्यक्ति, शांतिपूर्वक एकत्र होने, असोसिएशन बनाने, घूमने-फिरने, निवास और पेशे की स्वतंत्रता। 

हालांकि, ये स्वतंत्रताएँ असीमित नहीं हैं और राज्य द्वारा निश्चित परिस्थितियों में इन पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। किसी भी देशवासी को उतनी ही स्वतंत्रा का अधिकार होता है जब तक कि वह किसी और की स्वतंत्रा को प्रभावित नहीं करता है। 

3. शोषण के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार (Protection against Exploitation)

संविधान में निहित शोषण के विरुद्ध संरक्षण भारतीय संविधान द्वारा प्रदान किया गया काफी महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है। 

यह मौलिक अधिकार बाल श्रम, मानव तस्करी, और अन्य रूपों के शोषण के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। इस अधिकार के अंतर्गत बाल श्रम को प्रतिबंधित किया गया है और कार्यस्थल पर मजदूरों के अधिकारों की रक्षा की जाती है।

4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (Freedom of Religion)

भारत की संविधान-सभा द्वारा भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया। इसका आशय यह है कि राज्य का कोई धर्म नहीं है और प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को मानने तथा उसका प्रचार करने की पूरी स्वतन्त्रता है। 

धर्म के आधार पर राज्य द्वारा नागरिकों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता। धर्म की स्वतंत्रता भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाती है, जहाँ सभी धर्मों को समान सम्मान और स्वतंत्रता प्राप्त होती है। 

इस अधिकार के तहत, हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने, उसमें शिक्षा देने और उसे प्रचारित करने की स्वतंत्रता है।

5. सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार (Cultural and Educational Rights)

सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति, भाषा या लिपि को संरक्षित करने और शैक्षिक संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन करने का अधिकार देते हैं। 

यह भारतीय समाज की विविधता को मान्यता देता है और उसे संरक्षित करता है।

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)

संवैधानिक उपचारों का अधिकार डॉ. बी.आर. अंबेडकर द्वारा "संविधान का हृदय और आत्मा" कहा गया है। यह अधिकार नागरिकों को यह सुनिश्चित करने का अधिकार देता है कि यदि उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो वे सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में अपील कर सकते हैं। 

यह न्याय प्राप्ति के लिए एक सीधा मार्ग प्रदान करता है। संपत्ति का मौलिक अधिकार बदलकर एक कानूनी अधिकार हो गया है। 

मौलिक अधिकारों में मूल रूप से संपत्ति का अधिकार भी शामिल था। लेकिन 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 के माध्यम से इसे मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया और इसे एक कानूनी अधिकार में परिवर्तित किया गया। 

इस परिवर्तन ने सरकार को जनता के कल्याण हेतु संपत्ति का अधिग्रहण करने की अधिक स्वतंत्रता प्रदान की। मौलिक अधिकारों का प्रावधान भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और लोकतंत्र की रक्षा करता है। 

ये अधिकार न सिर्फ व्यक्तिगत गरिमा और स्वतंत्रता को सुनिश्चित करते हैं, बल्कि एक न्यायपूर्ण और समान समाज के निर्माण की दिशा में भी मार्गदर्शन करते हैं। 

ये अधिकार समय के साथ विकसित होते रहे हैं और आजकल की भारतीय समाज की जरूरतों और चुनौतियों के हिसाब से ढलते रहे हैं। इस प्रकार, मौलिक अधिकार भारतीय लोकतंत्र के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं।