यूनिफॉर्म सिविल कोड एक देश एक नियम के तहत काम करता है। इसके तहत सभी धर्म के नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, गोद लेना, विरासत और उत्तराधिकार जैसे कानूनों को एक कॉमन कानून के तहत नियंत्रित करने की बात कही गई है, फिर चाहे वह व्यक्ति किसी भी धर्म का क्यों न हो।
मौजूदा समय में अलग-अलग धर्मों में इन्हें लेकर अलग-अलग राय और कानून हैं।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के भाग चार में समान नागिरक संहिता का उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद 44 के मुताबिक, राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।
अनुच्छेद 44 का उद्देश्य कमजोर समूहों के खिलाफ भेदभाव दूर कर विभिन्न सांस्कृतिक समूहों के बीच सामांजस्य स्थापित करना था।
उस समय भारत के पहले कानून मंत्री डॉ. बीआर अंबेडकर ने कहा था कि समान नागिरक संहिता वांछनीय है, लेकिन फिलहाल यह स्वैच्छिक होनी चाहिए।
यूनिफॉर्म सिविल कोड सबसे पहले ब्रिटिश सरकार के समय आया था, जब ब्रिटिश सरकार ने सुबूत, अपराध और अनुबंधों से संबंधित एक रिपोर्ट पेश की।
इस रिपोर्ट में भारत की संहिताकरण की एकरूपता को लेकर जोर दिया गया। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि हिंदू और मुस्लिम के व्यक्तिगत कानून संहिताकरण से बाहर रहे।
साल 1941 में हिंदू कानूनों को सहिंताबद्ध करने के लिए बीएन राव समिति का गठन भी किया गया था।
भारत में जाति और धर्म के आधार पर अलग-अलग कानून और मैरिज एक्ट हैं, जिसकी वजह से सामाजिक ढ़ांचा बिगड़ा हुआ है।
यही वजह है, कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड की मांग उठती रही है, जो समस्त वर्ग, जाति, धर्म और संप्रदाय को एक ही सिस्टम में लेकर आए।
एक वजह यह भी है, कि अलग-अलग कानूनों की वजह से न्यायिक प्रणाली पर भी प्रभाव पड़ता है।
र्तमान में लोग शादी, तलाक इत्यादि मुद्दों से जूझने के लिए पर्सनल लॉ बोर्ड ही जाते हैं। इसका एक प्रमुख लक्ष्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों समेत अंबेडकर द्वारा परिकल्पित कमजोर वर्गों को सुरक्षा प्रदान करना है।
साथ ही, एकता के माध्यम से राष्ट्रवादी उत्साह को प्रोत्साहन देना है। जब यह कोड बनाया जाएगा तो यह उन कानूनों को सुगम बनाने का कार्य करेगा।
जो कि फिलहाल धार्मिक मान्यताओं जैसे कि हिंदू कोड बिल, शरीयत कानून व आदि के आधार पर अलग-अलग हैं।