भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी। इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को कानूनन लागू कर दिया था।
आसान भाषा में इसे अगर हम समझें तो इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय जरिया है। यह एक वचन पत्र की तरह है।
जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता है।
इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर लिखा कि "पीएम नरेंद्र मोदी की भ्रष्ट नीतियों का एक और सबूत आपके सामने है"।
भाजपा ने इलेक्टोरल बॉण्ड को रिश्वत और कमीशन लेने का माध्यम बना दिया था। आज इस बात पर मुहर लग गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता को रद्द कर दिया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने गुरुवार को सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया।
इस मामले पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पर कहा," सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार की बहुप्रचारित चुनावी बॉन्ड योजना को संसद द्वारा पारित कानूनों के साथ-साथ भारत के संविधान दोनों का उल्लंघन माना है। हम इस फैसले का स्वागत करते हैं।"
कांग्रेस नेता ने आगे कहा, "अदालत का फैसला नोटों पर वोट की शक्ति को मजबूत करेगा। मोदी सरकार चंदादाताओं को विशेषाधिकार देते हुए अन्नदाताओं पर अत्याचार कर रही है।