गुलजारी लाल नंदा का परिचय एवं सादगी 

 गुलज़ारीलाल नंदा (Gulzarilal Nanda) का जीवन सादगी से भरा हुआ था। उन्होंने कभी सत्ता का लालच नहीं किया। परन्तु वे भारत के दो बार अन्तरिम प्रधानमंत्री बने। पहली बार तो वे पं० जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद 1964 में तथा दूसरी बार लाल बहादुर शास्त्री के ताशकंद में आकस्मिक निधन के बाद 1966 में प्रधानमंत्री बने। वे सादगी को ही जीवन और सेवा धर्म मानते थे। उनका मानना था कि “नेतृत्व का अर्थ आदेश देना नहीं, बल्कि विश्वास जगाना है।

गुलजारी लाल नंदा की जीवन एवं शिक्षा 

गुलज़ारीलाल नंदा का जन्म 4 जुलाई 1898 को सियालकोट जो कि अब पाकिस्तान में है, में हुआ था। उनके पिता एक शिक्षक थे और माता गृहिणी। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि बहुत ही साधारण थी। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई की थी। अर्थशास्त्र से शिक्षित होने के कारण वे श्रमिकों की स्थिति समझ कर सुधारने का कार्य कर सके। Non-Cooperation Movement में भाग लेने के कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा।

श्रमिकों का उत्थान एवं उद्योग

नंदा जी ने Labor reforms के क्षेत्र में “बॉम्बे टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन” की स्थापना की और श्रमिकों व मिल मालिकों के बीच एक तारतम्य स्थापित किया, जिससे श्रमिकों का शोषण रुक सके। उनके मुख्य योगदान:

  • श्रमिकों की रक्षा के लिए क़ानूनों का सुरक्षा घेरा।
  • Minimum wages, सोशल सिक्योरिटी और हाउसिंग स्कीम की आधारशिला रखी।
  • औद्योगिक विवादों को सुलझाने के लिए संवाद का रास्ता चुना
  • श्रमिक कल्याण को आर्थिक नीति का केन्द्र बिन्दु बनाया।

राजनैतिक यात्रा 

स्वतंत्र भारत में नंदा जी ने आर्थिक योजनाओं में महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्हें पं० नेहरू की सरकार में मिनिस्टर फॉर लेबर एम्प्लॉयमेंट, फिर मिनिस्टर फॉर प्लानिंग और अंत में Home Minister बनाया। उन्होंने पंचवर्षीय योजना में मानव उत्थान और समानता के planning के लिए कार्य किए।

संकट में धैर्यवान 

नंदा जी ने देश में संकट के समय धैर्य बनाए रखते हुए देश की बागडोर संभाली। जवाहरलाल नेहरू एवं लाल बहादुर शास्त्री जी के निधन के बाद अन्तरिम प्रधानमंत्री बनाए जाने पर देश को स्थिरता दी।

उपलब्धियाँ 

  • दो बार भारत के अन्तरिम प्रधान मंत्री बने।
  • योजना आयोग में मानवीय दृष्टिकोण अपनाया।
  • सोशल सिक्योरिटी और हाउज़िंग की योजना की शुरुआत की।
  • 1997 में भारत रत्न से अलंकृत।

नेतृत्व का गुण

  • राजनीति में नैतिकता का मानक स्थापित करना।
  • सत्ता से ज्यादा सेवा पर ज़ोर देना है।
  • विषम परिस्थितियों में धैर्य, स्थिरता, शांति बनाए रखना।
  • अर्थशास्त्र को सामाजिक समानता से जोड़ना।
  • शोर शराबे के बिना निर्णय लेना।

आधुनिक भारत के लिए नेतृत्व पाठ

  • सादगी, विश्वास और पारदर्शिता।
  • संकट में संयम और धैर्य।
  • संपूर्ण ईमानदारी।
  • नेतृत्व से पहले सेवा।
  • नैतिकता और महत्त्वाकांक्षा।

निष्कर्ष

 गुलजारीलाल नंदा भारतीय लोकतंत्र के “Conscience Keeper” थे। जिन्होंने अपने कर्म से यह स्थापित किया कि सादगी ही सबसे बड़ी ताकत है। Governance केवल नीतियों से नहीं अपितु मूल्यों से स्थापित होता है।