भारतीय इतिहास में आजाद भारत में जितने भी लीडर हुये हैं उनमे देश- प्रेम प्रथम स्थान पर रहा है। विश्वनाथ प्रताप सिंह स्वतन्त्र भारत के सातवें प्रधान मंत्री (Prime Minister of India) रहे है। पूरा देश उन्हें वी.पी. सिंह के नाम से जानता था। अपने कार्यों से उन्होंने सिद्ध किया कि जनता की सेवा शक्ति से नही सिद्धान्तों से की जा सकती है। वे कहते थे - "सत्ता साधन नहीं, सेवा का माध्यम है।

विश्वनाथ प्रताप सिंह का जीवन परिचय (Vishwanath Pratap Singh)

वी पी सिंह का जन्म इलाहबाद, जिले के अल्हौली गाँव मे जो कि उत्तर प्रदेश में है, हुआ था। वे एक राजघराने  से सम्बन्ध रखते थे। राजघराने से सम्बन्ध होने के कारण राजनीति उनके खून में रची - बसी थी। उनमें राजनैतिक क्वालिटी और जनता की सेवा की भावना शुरू से ही दिखाई देती थी।

विश्वनाथ प्रताप सिंह की शिक्षा

विश्वनाथप्रताप सिंह ने देहरादून और इलाहबाद से उच्चशिक्षा प्राप्त की थी। छात्र जीवन से ही वे. स्वतन्त्र और समाज सुधार आन्दोलनो से जुडे थे। 

राजनैतिक जीवन (Political Career of V.P. Singh)

सन् 1969 में वे पहली बार विधान सभा के लिये चुने गये। 1971 में वे लोकसभा सदस्य बने। 1977 में वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री (Chief Minister of Uttar Pradesh) बने। वे कांग्रेस पार्टी से एक ईमानदार और कर्मठ नेता थे गरीबो, मजदूरो और ग्रामीण समाज के लिये उन्होंने अनेक वैलफेयर प्रोग्राम लागू किए।

केन्द्र सरकार में उनकी भूमिका (Role in Central Government)

राजीव गांधी सरकार में उन्होंने वित्त मंत्री के रूप में पद‌भार संभाला। उन्होंने कालाधन, टैक्स, और भ्रष्टाचार के खिलाफ कडे फैसले लिये। किन्तु जब बोफोर्स घोटाला उजागर हुआ तो उन्होंने नैतिकता का परिचय देते हुऐ अपने पद से त्याग पत्र देकर एक मिसाल कायम की। 

जनता दल से प्रधान मंत्री तक (Journey to Prime Minister)

कांग्रेस पार्टी से मतभेद होने पर उन्होंने "जन मोर्चा का गठन किया। बाद 'जन मोर्चा' ही जनता दल" बना। अपने राजनैतिक जीवन में उन्होंने पारदर्शिता पर बल दिया।

मण्डल आयोग (Mandal Commission Implementation)

बीपी सिंह ने मंण्डल आयोग की सिफारिशो को कड़ाई से लागू किया। इसके अन्तर्गत उन्होंने अदर बैक वर्ड क्लास (OBC) के लिये आरक्षण मंजूर किया। इसके कारण उन्हें जनता को भारी विरोध का सामना करना पड़ा। आंदोलन भी हुये। लेकिन वे अपने फैसले से टस से मस नही  हुये।

त्यागपत्र और सामाजिक दृष्टिकोण 

भारी राजनैतिक और - जनता के विरोध के कारण उन्हें अपने पद से त्याग पत्र तक देना पडा किन्तु उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उनका मानना था कि - "आर्थिक न्याय  और सामाजिक न्याय - दोनों एक दूसरे के पूरक है।" आज भी उन्हें ईमानदार और स्वच्छ छवि के लीडर माना जाता है।

निष्कर्ष

विश्वनाथ प्रताप सिंह स्वयं में एक विचार धारा थे। अपने कार्यो से दिखाया कि राजनीति नैतिक मूल्यों पारदर्शिता और समाजसेवा पर आधारित हो सकती है। वे एक सच्चे देश भक्त, न्यायप्रिय, ईमानदार प्रशासक के रूप में हमेशा जाने जायेंगे |