आजादी के बाद भारत को एक सूत्र में पिरोने और प्रशासनिक व्यवस्था सुचारु रूप से देश में क्रियान्वित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेता से गोविन्द बल्लभ पंत (Pandit Govind Ballabh Pant)। उनकी नीतियों ने देश के संघीय ढांचे को मजबूती दी।

गोविन्द बल्लभ पंत का जीवन परिचय 

गोविन्द बल्लभ पंत का जन्म 10 सितम्बर 1887 को उत्तराखण्ड के अल्मोडा में हुआ था। उनके पिता मनोरथ पंत एक सरकारी कर्मचारी थे। माँ गोविन्दा देवी एक गृहणी थी।

गोविन्द बल्लभ पंत की शिक्षा

पंत जी ने प्रारम्भिक शिक्षा अल्मोड़ा और नैनीताल से प्राप्त की थी। फिर उन्होंने इलाहबाद यूनीवर्सिटी (Allahabad University) से B.A और L.L B. की डिग्री प्राप्त की। उन दिनों अच्छे वकीलों में उनकी गिनती की जाती थी ।

स्वतंत्रता सेनानी के रूप में

पंत जी महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के विचारों से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े। उन्होंने असहयोग आन्दोलन (Non-Cooperation Movement) और नमक सत्याग्रह (Salt Satyagraha) में ब्रिटिश राज के खिलाफ बिगुल बजाया। 1921 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ उन्होंने कानूनी लड़ाई भी लड़ी। उनका मानना था कि -"स्वतंत्रता केवल राजनैतिक आजादी नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता की नीव है।

एक राजनैतिक और अच्छे प्रशासक

स्वतंन्त्र भारत में वे संयुक्त प्रान्त जो अब उत्तर प्रदेश है के पहले मुख्यमंत्री (First Chief Minister of Uttar Pradesh) बने थे। मुख्यमंत्री पद पर रहते हुये उन्होंने हिन्दी भाषा को प्रशासनिक भाषा बनाया। भूमि सुधार और किसानों के हित में जमीदारी उन्मूलन अधिनियम लागू किया। शिक्षा, स्वास्थय और सड़क निर्माण के क्षेत्र में ठोस कदम उठाये। उनकी प्रशासनिक दक्षता के कारण उन्हें "जन सेवक मुखमंत्री" (People’s Chief Minister) कहा जाता था।

गृहमंत्री के रूप में (Union Home Minister of India)

पण्डित गोविन्द भाई बल्लभ पंत 1955 में भारत के गृहमंत्री बने। अपने कार्यकाल में उन्होंने भारत की एकता अखण्डता के लिये महत्वपूर्ण कार्य किये।

* राज्यों के पुनर्गठन में उन्होंने भाषाई आधार पर पुनर्गठन किया जिससे देश के संघीय ढांचे को मजबूती मिली।

* हिन्दी को राजभाषा (Official Language of India) बनाने का कार्य किया। उनका मानना था कि- "हिन्दी ही वह  धारा है जो भारत की विवधता को एकता में जोड़ सकती है।"

* कानून और व्यवस्था के अन्तर्गत उन्होने पुलिस प्रशासन को जबाब देह बनाने का कार्य किया।

* संविधान के मूल सिद्धान्तों की रक्षा के लिये उन्होंने लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन स्थापित किया।

व्यक्तित्व

पंत जी ईमानदार, कर्मठ, सादगी पसंद, संस्कृति नैतिक मूल्यो, और शिक्षा के प्रबल समर्थक थे। वे कहते थे- " राजनीति सेवा का माध्यम है, स्वार्थ का नहीं।" उनकी कार्य शैली गाँधी विचारधारा पर आधारित थी।

पुरुष्कार 

सन् 1961 में भारत सरकार ने उन्हें "भारत रत्न" से सम्मानित किया था। उनके सम्मान में उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में पंत विश्वविद्यालय की स्थापना की जो कि कृषि क्षेत्र में देश में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

निधन 

पंत जी का निधन 07 मार्च 1961 को हुआ था। यह देश के लिये अपूरणीय अतिथी। वास्तव में जनता ने उस दिन अपना प्रिय नेता खो दिया।

निष्कर्ष

गोविन्द बल्लभ पंत ने भारत में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत किया था। वे सिर्फ एक नेता ही नही अपितु एक  true visionary reformer of India थे।