स्वतंत्र भारत में ऐसे नेता हुये है जिन्होंने राजनीति में ही नही अपितु समाज सुधार, शिक्षा के क्षेत्र में देश को अतुलनीय योगदान दिया। उन्हीं में से एक डॉ सम्पूर्णानन्द थे वे एक philosopher, स्वतंन्त्रा सेनानी और statesman थे। 

डॉ. सम्पूर्णानन्द का जीवन परिचय

डा० सम्पूर्णानन्द का जन्म 01 जनवरी सन् 1891 काशी जो की अब वाराणसी में हैं, में हुआ था | उनके पिता का नाम पंडित शम्भू नाथ पाण्डे था | उनके पिता संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे। घर के धार्मिक वातावरण और विद्वता का डॉ सम्पूर्णानन्द के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा | 

डॉ. सम्पूर्णानन्द की शिक्षा

डॉ सम्पूर्णनन्द ने संस्कृत, दर्शन (Philosophy), इतिहास (History) और राजनैतिक विज्ञान (Political Science) का अध्ययन किया था। शिक्षा के Subject के कारण ही वे एक विचारक और समाज सुधारक थे। उनके जीवन पर बाल गंगाधर तिलक, स्वामी विवेकानन्द और महात्मा गांधी का गहरा प्रभाव पड़ा।

स्वतंत्रा आन्दोलन में भूमिका

डॉ साहब ने भारतीय स्वतंतन्त्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभायी। सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लिया। इण्डियन नेशनल कांग्रेस (Indian National Congress) से जुडे एवं अपने भाषणों और लेखन से समाज को जागृत करने का कार्य किया। वे "द लीडर अंग्रेजी अखबार और "मर्यादा" पत्रिका से जुड़े रहे। सम्पूर्णनन्द मानते थे - "भारत की आजादी केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि मानसिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता की भी प्रतीक होनी चाहिये।"

राजनैतिक योगदान

स्वतंत्र भारत में उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। उनका कार्यकाल 1954 से 1960 तक का रहा था। - उनका मुख्य उद्देश्य था - " शिक्षा, ग्रामीण विकास और सांस्कृतिक - पुनजगिरण!"

उपलब्धियां 

उनके शासन की प्रमुख उपलब्धियां इस प्रकार रही।

1- शिक्षा सुधार (Educational Reforms)

शिक्षा सुधार के, क्षेत्र में उन्होंने शिक्षा को भारतीय संस्कृति से जोड़ने का कार्य किया। उनके अनुसार शिक्षा को रोजगार परक ही नही अपितु चरित्र निर्माण भी होना चाहिये। 

2. कृषि और ग्रामीण विकास (Agricultural & Rural Development)

किसानों की दयनीय दशा को देखते हुये उन्होंने किसानों की दशा को सुधारने के लिये कृषि क्षेत्र मैं अनेक योजनाएँ शुरू की। "सहकारी कृषि" (Cooperative Farming) को प्रोत्साहित किया।

3- प्रशासनिक सुधार (Administrative Reforms) 

उन्होने प्रशासन को जनता के प्रति जबाब देह बनाने की नीतियां लागू की।

4- संस्कृति और भाषा का संवर्धन (Promotion of Culture and Language)

उनके शासन में हिन्दी को प्रमुख भाषा के रूप में और मजबूत किया गया। सरकारी कामकाज में हिन्दी भाषा को प्रमुखता दी।

एक लेखक

उन्होंने भारतीय दर्शन, वेदांत, समाजशास्त्र और राजनीति पर कई पुस्तके लिखी। उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ राष्ट्रीय जीवन में नैतिकता, भगवान बुद्ध और हिज टचिंग, हिंदू संस्कृति का मूलतत्व हैं। उनका मानना था कि - "सच्ची शिक्षा वेह है जो व्यक्ति में आत्म ज्ञान और समाज के प्रति जिम्मेदारी पैदा करे।"

विचारधारा

डा० सम्पूर्णानन्द एक विचारक और गांधी वादी विचारधारा से प्रेरित थे। उनका मानना था कि - " भारत की आत्मा गांवों में बसती है।" उनकी विचारधारा सत्य, अहिसा और आत्म- निर्भरता पर आधारित थी।

राजस्थान के राज्यपाल

सम्पूर्णानन्द को 1962 में राजस्थान का राज्यपाल नियुक्त किया गया। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में राजस्थान में अनेक योगदान किया।

निधन 

डा० सम्पूर्णानन्द का निधन 10 जनवरी 1969 को हुआ था। उनकी स्मृति में वारणसी में "सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय" (Sampurnanand Sanskrit University) की स्थापना की। यह विश्वविद्यालय संस्कृत और भारतीय दर्शन के अध्ययन का प्रमुख केन्द्र है।

निष्कर्ष

उनके जीवन से हमें शिक्षा मिलती है कि नेतृत्व अर्थ केवल सत्ता नही, बल्कि समाज के प्रति जिम्मेदारी है। वे एक ऐसे लीडर थे जिन्होंने Education, राष्ट्रप्रेम, सत्य और सादगी, Spirituality, राजनीति को एक सूत्र में पिरोया। उनकी विचारधारा आज भी प्रासंगिक है।