सदियों से 'धर्म और राजनीति' या 'राजनीति और धर्म' में काफी गहरा संबंध रहा है। शुरुआत में धर्म, शासन के लिए सुव्यवस्था और सुनीति का संस्थापक बना।
परंतु, बाद में अनेक शासकों ने धर्म विशेष को अपना राजधर्म घोषित किया और अपने अनुयायियों की तादात बढ़ाने के लिए धर्म की आड़ में युद्ध किया है।
इस्लाम, ईसाई, यहूदी और हिंदू धर्म से पृथक हुए कुछ वर्गों ने शक्ति की आड़ में अपनी मान्यता व अपने धर्म के विस्तार का कार्य किया।
धर्म और राजनीति में हमेशा मर्यादित संपर्क बना रहना चाहिए, जिससे कि दोनों एक दूसरे की परस्पर सकारात्मक मदद कर सकें।
ऐसा ना होने पर इससे धार्मिक प्रतिक्रियावाद, कट्टरपंथ, सांप्रदायिकता व गुलामी की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है। यह स्वतंत्रता और समानता जैसे महत्वपूर्ण मूल्यों को प्रभावित करती हैं।
इसलिए आज दुनियाभर में अधिकांश लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाया गया है।
स्वतंत्रता से पहले ही भारत में धार्मिक आधार पर राजनीतिक दलों का गठन होने लगा था। जैसे- मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा आदि।
धर्म के नाम पर भारत का विभाजन होने के बावजूद यह राजनैतिक दल न केवल अस्तित्व में रहे बल्कि धार्मिक सांप्रदायिकता को बढ़ावा भी देते रहे।
यह सांप्रदायिक दल धर्म को राजनीति में प्रधानता देते हैं। धर्म के आधार पर प्रत्याशियों का चुनाव करते हैं और संप्रदाय के नाम पर वोट मांगते हैं।
धार्मिक संगठन भारतीय राजनीति में सशक्त दबाव समूह की भूमिका अदा करते हैं। यह समूह न केवल शासन की नीतियों को प्रभावित करते हैं, बल्कि अपने पक्ष में अनुकूल निर्णय भी करवाते हैं।
बहुत बार अप्रत्यक्ष रूप से धर्म के आधार पर पृथक राज्य की मांग भी की जाती है। पंजाब में अकाली दल द्वारा अलग राज्य की मांग ऊपरी स्तर पर तो भाषा ही नजर आती है
परंतु यथार्थ रूप से यह धर्म के आधार पर पृथक राज्य की मांग थी।
केंद्र एवं राज्य के मंत्रिमंडल के निर्माण में भी हमेशा इस बात को ध्यान में रखा जाता है, कि प्रमुख धार्मिक संप्रदायों के लोगों को उसमें प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाए।
समस्त राजनीतिक दल चुनाव से पूर्व अपने उम्मीदवारों का चयन करते हैं। ऐसा करते वक्त तकरीबन सभी राजनीतिक दल उम्मीदवारों के धर्म और चुनाव क्षेत्र के लोगों के धर्म के प्रति खास ध्यान देते हैं।
इस प्रकार धर्म को समक्ष रखकर उम्मीदवारों का चयन भारतीय राजनीति पर सांप्रदायिक प्रभाव दर्शाता है।
सभी राजनीतिक पार्टियां अधिक बहुमत हांसिल करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण धार्मिक अल्पसंख्यकों को संतुष्ट करने का हर संभव प्रयास करते हैं, ताकि वे ज्यादा से ज्यादा मत प्राप्त कर सकें।
इस प्रकार की गतिविधियां राजनीति को सांप्रदायिक रंग देने के लिए उत्तरदायी होती हैं।
हर एक राजनीतिक दल उम्मीदवारों का चयन करते समय इस बात का खास ध्यान रखते हैं, कि अलग अलग धर्मों के लोगों को अपने उम्मीदवारों की सूची में शामिल करें, जिससे कि उन धर्मों के लोग उस दल को वोट दें।
भारतीय राजनीति में धर्म की अहम भूमिका है। भारतीय राजनीतिक इतिहास में धर्म हमेशा से राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है।
आज के समय में भी राजनीति के अंदर धर्म की भूमिका साफ नजर आती है। लेकिन, राजनीति का धर्म होना चाहिए ना कि धर्म की राजनीति।