आचार्य प्रमोद कृष्णम कांग्रेस के काफी बड़े नेता रहे हैं। छात्र राजनीति के समय एनएसयूआइ से कांग्रेस का झंडा हाथ में लेने वाले प्रमोद कृष्णम थे। वक्त के साथ परिवर्तित विचारधारा ने उनकी दूरी कांग्रेस से काफी ज्यादा बढा दी है।
सनातन धर्म और अध्यात्म से जुड़े प्रमोद कृष्णम का भाजपा में आना कोई आश्चर्य वाली बात नहीं थी लेकिन अब वह आने वाले समय में कांग्रेस के लिए क्या मुसीबत खड़ी करेंगे ये जानना बहुत ही रोमांचक होगा।
राम, राष्ट्र और सनातन। इन तीन विषयों पर कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम की विचारधारा कांग्रेस से पूर्णतय इतर रही और यही कांग्रेस से दूरी का कारण भी बनी।
साल 2016 में सपा शासनकाल में कल्कि धाम शिलान्यास पर रोक लगी तो इसके विरुद्ध लड़ाई में आचार्य को कांग्रेस का साथ भी नहीं मिला था।
इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक अपनी बात रखने वाले आचार्य प्रमोद कृष्णम के लिए प्रदेश की भाजपा सरकार का कोर्ट में रुख काफी नरम हुआ तो श्रीकल्कि धाम की राह भी प्रशस्त हुई।
परिणामस्वरूप प्रमोद कृष्णम राम, राष्ट्र और सनातन में रम गए चूंकि केंद्र की राजनीति अलग है, ऐसे में प्रमोद कृष्णम ने समय-समय पर कांग्रेस के दिग्गजों को दुष्प्रवृति की संज्ञा दी तो कभी अज्ञानी और अहंकारी तक कह दिया।
राम से कांग्रेस की दूरी ने इस खाई को और विशाल रूप दे दिया और आखिरकार हाथ का साथ भी छह साल के लिए छूट गया।
इस निष्कासन को भी राम के वनवास से जोड़कर उन्होंने 14 साल की माँग भी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष से की थी। हालांकि, अब उनका पूरी तरह से भाजपा से तालमेल हो चुका है।
हजारों की भीड़ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सात बार उनका नाम मंच से लिया वैसे ही जैसे 42 साल पहले राजीव गांधी के साथ जुड़े थे।
श्री कल्किधाम के शिलान्यास के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ऐतिहासिक नगरी संभल की धरती पर बुलाकर आचार्य प्रमोद कृष्णम का राजनीतिक और सामाजिक कद तो बढ़ ही गया।
साथ ही, संत समाज में भी उनकी प्रतिष्ठा काफी बढ़ी है। दरअसल, कयास यही लगाया जा रहा है कि श्री कल्कि धाम के शिलान्यास के उपरांत उनका अगला कदम भाजपा में शामिल होना हो सकता है।
इसके लिए वह इशारा पहले ही कर चुके हैं। उन्हें भाजपा से टिकट होने के भी कयास लगाए जा रहे हैं।