भारत में लोकसभा चुनाव से पांच माह पूर्व पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में हिंदी पट्टी में भाजपा की जबर्दस्त जीत सिर्फ मोदी की लोकप्रियता की कायमी पर मोहर ही नहीं है, इसने आगामी लोकसभा चुनाव का नरेटिव भी सेट कर दिया है। ये है मोदी की गारंटी और मोदी का नया जातिवाद।
दरअसल, ये कांग्रेस की चुनावी गारंटियों तथा क्षेत्रीय दलों के जातिवाद के मुद्दों का नया जवाब है। इन तीनों हिंदी भाषी राज्यों में से दो में सत्तारूढ़ और एक में सत्ताकांक्षी कांग्रेस की करारी हार में छिपा सबक यह भी है, कि उसे राष्ट्रीय पार्टी बने रहना है तो उसे क्षेत्रीय दलों के मुद्दों की पिच पर बैटिंग करना छोड़कर खुद को अखिल भारतीय सोच के साथ ही मतदाता के पास जाना होगा।
दूसरे, चुनाव प्रबंधन की परीक्षा में कांग्रेस को माइक्रो मैनेजमेंट के पेपर में प्रथम श्रेणी के अंक लाने होंगे। इन नतीजों ने यह भी स्पष्ट किया है, कि लोकतंत्र में चुनाव सिर्फ परसेप्शन, सोशल मीडिया एक्टिवनेस और प्रायोजित सर्वे के भरोसे नहीं जीते जाते। जनमानस के हृदय को भांपने और जनाकांक्षा को संतुष्ट कर सकने के काम और वादों को पूर्ण करने से जीते जाते हैं।