डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। इन्होंने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र की अखंडता के लिए समर्पित किया था।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी की वीरांगना माँ ने अपने बेटे की असामयिक मौत की खबर सुनने के बाद कहा कि "मेरे पुत्र की मृत्यु भारत माता के पुत्र की मृत्यु है।"
भारत वीरों की भूमि है, इस पावन धरा पर एक से एक शूरवीरों ने जन्म लिया है। भारत की भूमि का तेज ऐसा है कि यहां इंसान को भगवान बनाने की भी क्षमता है। आइए जानते हैं, श्यामा प्रसाद मुखर्जी के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म एक प्रतिष्ठित परिवार में 6 जुलाई 1901 को कलकत्ता में हुआ था। इनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बंगाल में एक शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी के रूप में प्रसिद्ध थे।
कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक होने के पश्चात श्री मुखर्जी 1923 में सेनेट के सदस्य बने। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात, 1924 में उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में नामांकन कराया।
1926 में उन्होंने इंग्लैंड के लिए प्रस्थान किया जहां लिंकन्स इन से 1927 में बैरिस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की। 33 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए और विश्व का सबसे युवा कुलपति होने का सम्मान प्राप्त किया।
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श्री मुखर्जी 1938 तक इस पद को सुशोभित करते रहे। अपने कार्यकाल में उन्होंने अनेक रचनात्मक सुधार किये तथा इस दौरान 'कोर्ट एंड काउंसिल ऑफ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बैंगलोर' तथा इंटर यूनिवर्सिटी बोर्ड के सक्रिय सदस्य भी रहे।
कांग्रेस प्रत्याशी और कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के रूप में उन्हें बंगाल विधान परिषद का सदस्य चुना गया किन्तु कांग्रेस द्वारा विधायिका के बहिष्कार का निर्णय लेने के पश्चात उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। बाद में डॉ. मुखर्जी स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े और निर्वाचित हुए।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अंतरिम सरकार में उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री के रूप में शामिल किया। नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच हुए समझौते के पश्चात 6 अप्रैल 1950 को उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर-संघचालक गुरु गोलवलकर जी से परामर्श लेकर श्री मुखर्जी ने 21 अक्टूबर 1951 को राष्ट्रीय जनसंघ की स्थापना की।
1951-52 के आम चुनावों में राष्ट्रीय जनसंघ के तीन सांसद चुने गए जिनमें एक डॉ. मुखर्जी भी थे। तत्पश्चात उन्होंने संसद के अन्दर 32 लोकसभा और 10 राज्यसभा सांसदों के सहयोग से नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी का गठन किया।
डॉ. मुखर्जी भारत की अखंडता और कश्मीर के विलय के दृढ़ समर्थक थे। उन्होंने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को भारत के बाल्कनीकरण की संज्ञा दी थी।
अनुच्छेद 370 के राष्ट्रघातक प्रावधानों को हटाने के लिए भारतीय जनसंघ ने हिन्दू महासभा और रामराज्य परिषद के साथ सत्याग्रह आरंभ किया।
डॉ. मुखर्जी 11 मई 1953 को कुख्यात परमिट सिस्टम का उलंघन करके कश्मीर में प्रवेश करते हुए गिरफ्तार कर लिए गए। गिरफ्तारी के दौरान ही विषम परिस्थितियों में 23 जून, 1953 को उनका स्वर्गवास हो गया।