लोकसभा डिप्‍टी स्‍पीकर का कार्यकाल, उत्तरदायित्व और अधिकार क्या होते हैं

By :Admin Published on : 28-Jun-2024
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18वीं लोकसभा का पहला सत्र शुरू होते ही डिप्टी स्पीकर को लेकर पक्ष-विपक्ष में काफी खींचतान मची हुई है। लोकसभा का उपाध्‍यक्ष (Deputy Speaker) संसद के निचले सदन का दूसरा सर्वोच्च पदाधिकारी होता है। डिप्‍टी स्‍पीकर का चुनाव भी स्‍पीकर की तरह ही लोकसभा के सदस्‍य करते हैं।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 93 लोकसभा के उपाध्यक्ष का उल्लेख है। अनुच्छेद 93 के मुताबिक, लोकसभा के सदस्य दो सदस्यों को क्रमशः अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के तौर पर चुना जाता है। अगर इन दोनों में से कोई भी पद रिक्त होता है तो सदन उसका जल्द से जल्द पुनः चुनाव करता है।

क्या स्पीकर सौंप सकता है डिप्‍टी स्‍पीकर को अपना इस्‍तीफा ?

विशेष बात यही है कि डिप्‍टी स्‍पीकर लोकसभा स्‍पीकर के अधीनस्‍थ नहीं, बल्कि सीधे सदन के प्रति उत्तरदायी होते हैं। अगर दोनों में कोई भी इस्‍तीफा देना चाहता है तो उन्हें अपना इस्तीफा सदन को प्रस्तुत करना होगा। 

यानी कि अगर स्पीकर अपना इस्‍तीफा देता है तो वह डिप्‍टी स्‍पीकर को सौंप सकता है। अगर डिप्‍टी स्‍पीकर का पद रिक्त है तो महासचिव को इस्‍तीफा दे सकता है और साथ ही सदन को इसकी सूचना देनी होती है।  

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डिप्‍टी स्‍पीकर का चुनाव और कार्यकाल की समयावधि 

  • लोकसभा में डिप्‍टी स्‍पीकर का चयन लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमावली के नियम 8 के तहत किया जाता है।
  • डिप्‍टी स्‍पीकर चुनाव लोकसभा के सदस्यों द्वारा लोकसभा स्पीकर का चुनाव करने के तुरंत बाद ही किया जाता है।
  • लोकसभा अध्यक्ष ही उपाध्यक्ष के चुनाव तारीख तय करता है। डिप्‍टी स्‍पीकर का चुनाव सामान्‍य तौर पर दूसरे सत्र में होता है।
  • स्पीकर की तरह ही डिप्‍टी स्‍पीकर भी आमतौर पर लोकसभा के कार्यकाल (5 वर्ष) तक अपने पद पर बना रहता है।

डिप्‍टी स्‍पीकर को कब पद से हटाया जा सकता है?

  • अगर वह लोकसभा के सदस्य नहीं रह जाते।
  • अगर वह खुद लिखकर अपना इस्तीफा दे देते हैं।
  • लोकसभा के सभी सदस्यों द्वारा बहुमत से एक प्रस्ताव पारित करके भी हटाया जाए। यह प्रस्ताव 14 दिनों की अग्रिम सूचना देने के बाद ही लाया जा सकता है।

डिप्‍टी स्‍पीकर की जिम्‍मेदारियां और अधिकार

  • स्पीकर का पद रिक्त होता है या फिर स्पीकर सदन में अनुपस्थित होते हैं, तब उप-सभापति ही कामकाज संभालता है।
  • इन दोनों ही स्थितियों में डिप्‍टी स्‍पीकर को लोकसभा अध्यक्ष की तरह ही फैसले लेने का अधिकार होता है।
  • अगर स्‍पीकर किसी अधिवेशन से अनुपस्थित होता है तो डिप्‍टी स्‍पीकर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की भी अध्यक्षता करता है।
  • मतों के बराबर होने की स्थिति में उप-सभापति अध्यक्ष की तरह ही निर्णायक मत का विशेषाधिकार रखता है।
  • उप-सभापति के पास एक विशेष विशेषाधिकार होता है कि जब भी उसे किसी संसदीय समिति का सदस्य नियुक्त किया जाता है तो वह स्वतः ही उसका अध्यक्ष बन जाता है।