चीन की तरह ही बहुत सारे अन्य देश भी यह चाहते हैं, कि भारत को वीटो पावर नहीं मिले। जानकारों के अनुसार, यदि चीन अड़ंगा नहीं लगाएगा तो भारत इसका स्थायी सदस्य बन सकता है।
क्योंकि अमेरिका-ब्रिटेन जैसे देश भारत के पक्ष में अपना मत प्रदान कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में आज हम ये जानेंगे कि ये यूएनएससी कितना शक्तिशाली है और भारत को कैसे वीटो की पावर मिल सकती है। साथ ही, ये भी जानेंगे कि भारत के लिए इसकी सदस्यता कितनी आवश्यक है।
यूनाइटेड नेशन्स समिट के दौरान अमेरिका ने यूनाइटेड नेशन्स सिक्योरिटी काउंसिल में भारत की स्थाई सदस्यता के लिए सिफारिश की है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भी इसके लिए भारत का समर्थन किया है।
बतादें, कि यह विश्व स्तर की सुरक्षा प्रबंधन का सबसे बड़ा मंच माना जाता है। भारत इसकी सदस्यता पाने के लिए विगत कई वर्षों से प्रयास कर रहा है, लेकिन चीन हर बार कुछ ना कुछ व्यवधान उत्पन्न कर देता है।
सुरक्षा के इस सबसे बड़े मंच पर विश्व में शांति-व्यवस्था और सामूहिक सुरक्षा को सुव्यवस्थित रखने की जिम्मेदारी होती है। ये यूएन की सबसे शक्तिशाली ब्रांच या सब-ग्रुप है। इसमें 15 सदस्य होते हैं और दो तरह की मेंबरशिप होती है।
एक स्थाई मतलब परमानेंट और दूसरी अस्थाई यानी नॉन परमानेंट। 15 में से पांच देश इसके स्थाई सदस्य हैं। इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस और चीन शामिल हैं।
वहीं, इसके अतिरिक्त 10 ऐसे देश होते हैं, जो हर दो वर्ष में बदल जाते हैं। भारत इसका बहुत बार नॉन परमानेंट यानी अस्थाई सदस्य बन चुका है।
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भारत दीर्घ काल से इसका स्थाई सदस्य बनना चाहता है, क्योंकि जैसे ही भारत इसका स्थाई सदस्य बन जाएगा तो विश्व में भारत की शक्ति बढ़ जाएगी।
इतना ही नहीं देश के पास वीटो की पावर भी आ जाएगी, जिससे भारत इंटरनेशनल मामलों में सीधा दखल दे पाएगा। इससे भारत को विश्व स्तर पर विभिन्न प्रकार के कूटनीतिक लाभ भी मिलेंगे।
भारत की बढ़ती शक्ति के दावे पर फिर एक आधिकारिक मुहर लग जाएगी। इसके बाद में भारत पूर्ण रूप से पाकिस्तान या दूसरे पड़ोसी देशों से भी डील करने के लिए बेहद शक्तिशाली हो जाएगा।