मायावती ने बुधवार को यह दावा किया है, कि अगर एनडीए और इंडिया गठबंधन सत्ता पाने की तैयारी कर रहे हैं तो तैयारियों के मामले में बसपा भी कोई पीछे नहीं है। बसपा सुप्रीमो मायावती जी ने कहा है, कि कांग्रेस अपनी जैसी जातिवादी-पूंजीवादी सोच रखने वाली पार्टियों के साथ गठबंधन करके पुनः केंद्र की सत्ता में आने के सपने देख रही है, तो एनडीए भी अपने गठबंधन को हर मामले में मजबूत बनाने में लगा है।
बतादें कि उत्तरप्रदेश में 19 फीसद वोटों की साझेदार बसपा की ओर न तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने हाथ बढ़ाया है। वहीं, ना ही विपक्षी दलों ने कोई महत्व दिया। हालाँकि, अब तक तो कांग्रेस से बसपा की बातचीत की सुगबुगाहट चल रही थी। परंतु, बंगलुरू में विपक्षी राजनैतिक दलों के गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस (इंडिया) के आकार लेते ही संभवत: रही-सही संभावनाएं भी खत्म हो गईं हैं।
बसपा सिर्फ अपने दम पर चुनाव लड़ेगी
संभवतः यही कारण है, कि कुछ वक्त से कांग्रेस के प्रति कुछ नरम नजर आ रहीं बसपा प्रमुख मायावती का रुख अचानक गर्म हो गया है। कांग्रेस और उसके साथ गठबंधन करने वाली पार्टियों को जातिवादी-पूंजीवादी सोच वाला बताते हुए घोषणा कर दी है, कि न एनडीए और ना इंडिया, बसपा अकेले चुनाव लड़ेगी। साथ ही, मायावती ने कार्यकर्ताओं-समर्थकों से आहृवान किया कि केंद्र में अब किसी की भी मजबूत नहीं, बल्कि मजबूर सरकार ही बनेगी।
मायावती ने कांग्रेस पर भी जमकर हमला बोला
मायावती ने यह दावा किया है, कि अगर एनडीए और इंडिया गठबंधन सत्ता पाने की तैयारियों में हैं तो बसपा भी इसमें पीछे नहीं है। उन्होंने कहा है, कि कांग्रेस अपनी जैसी जातिवादी-पूंजीवादी सोच रखने वाली पार्टियों के साथ गठबंधन करके पुनः केंद्र की सत्ता में आने के ख्वाब देख रही है तो एनडीए भी अपने गठबंधन को हर मामले में मजबूत बनाने में प्रयासरत है। यह 300 सीटें जीतने का दावा कर रहा है, जबकि इनकी कथनी और करनी में कांग्रेस की तरह कोई खास अंतर नजर नहीं आता है।
मायावती ने आखिर क्यों बनाई सरकार और विपक्षी गठबंधन से फासला
आपकी जानकारी के लिए बतादें कि दोनों गठबंधनों की नीति, कार्यशैली एवं नीयत को गरीबों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़े वर्गों, मुस्लिम व अन्य अल्पसंख्यकों के प्रति एक समान बताते हुए बसपा प्रमुख ने दावा किया कि इसी वजह से बसपा ने सत्ताधारी गठबंधन व विपक्षी गठबंधन से अधिकांश अपनी दूरी ही बनाकर रखी है। प्रचंड मोदी लहर के रहते हुए भी 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने 19 प्रतिशत वोटों के जनाधार को बचाने में सफल रहीं मायावती ने अपनी इस ताकत को दिखाने का भी संकेत 'प्रतिशोध' के अंदाज में दिया है।
बहुजन समाज की बजाए सर्वजन पर बल देकर पुनः सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले से उम्मीद लगाए बैठीं बसपा मुखिया ने कमजोर वर्गों के लोगों का आहृवान किया है, कि आपसी भाईचारा के आधार पर व अपने दम पर अकेले ही मजबूत गठबंधन बनाकर बसपा को शक्ति देनी है। जिससे कि पुनः यहां कोई भी गठबंधन केंद्र व राज्यों की सरकार में पूरी मजबूती के साथ न आ पाऐ । इनकी मजबूत नहीं, मजबूर सरकार बने।
मायावती बड़े राजनैतिक दलों के साथ हाथ मिलाना नहीं चाहती हैं
जिससे कि किसी गठबंधन को पूर्ण बहुमत न प्राप्त होने में बसपा की अहमियत कायम रहे। मायावती ने यह भी पूरी तरह साफ कर दिया है, कि अब वह राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में भी किसी बड़े दल के साथ हाथ मिलाना नहीं चाहतीं। वह अकेले ही चुनाव लड़ेंगी। पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में क्षेत्रीय राजनैतिक दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का विकल्प खुला है। बशर्ते उनका एनडीए अथवा इंडिया गठबंधन से कोई संबंध नहीं हो।