मोदी सरनेम पर टिप्पणी से जुड़ी मानहानि के संदर्भ में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को गुजरात हाईकोर्ट से कोई राहत नहीं मिली है। हाईकोर्ट ने राहुल गांधी की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है। कांग्रेस नेताओं ने कहा है, कि वे निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। कांग्रेस नेताओं ने कहना है, कि राहुल गाँधी के साथ न्याय नहीं हुआ।
मोदी सरनेम को लेकर विवादित टिप्पणी के मामले में गुजरात हाईकोर्ट से कांग्रेस नेता राहुल गांधी को बड़ा झटका लगा है। बतादें, हाईकोर्ट ने राहुल गांधी की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट के फैसले पर कांग्रेस नेताओं की तरफ से प्रतिक्रिया आ रही हैं। कांग्रेस नेताओं ने फैसले पर निराशा जाहिर की है।
राहुल गाँधी कोर्ट के फैसले को चुनौती देने सुप्रीम कोर्ट जाऐंगे
कांग्रेस पार्टी ने गुजरात हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का निर्णय लिया है। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल का कहना है, कि मोदी सरनेम से संबंधित मानहानि के मामले में राहुल गाँधी जी की याचिका खारिज करने के फैसले को हम सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।
राहुल गाँधी के साथ न्याय नहीं हुआ : कांग्रेस
कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार ने हाईकोर्ट के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण कहा है। उन्होंने कहा है, कि न्याय नहीं हुआ है। शिवकुमार ने आगे बताया है, कि यह एक प्रकार से लोकतंत्र की हत्या है। परंतु, इसके बावजूद भी संपूर्ण भारत और विपक्षी दल राहुल गांधी के साथ खड़े हैं। राहुल एक महान नेता हैं, जो पूरे कि भारत को एकजुट करने के लिए लड़ रहे हैं। भाजपा इसे बर्दाश्त नहीं कर पा रही है।
कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने दिल्ली में जमकर नारेबाजी और प्रदर्शन किया
वहीं, गुजरात हाई कोर्ट द्वारा राहुल गांधी के खिलाफ आए फैसले से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भी काफी नाराजगी है। दिल्ली में कांग्रेस दफ्तर के पश्चात पार्टी कार्यकर्ता जुटे हैं। हाईकोर्ट का फैसला आते ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं में निराशा और उदासी सी छा गई। कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस दफ्तर के बाहर नारेबाजी और जमकर प्रदर्शन किया।
गुजरात हाईकोर्ट ने फैसले को लेकर क्या कहा है
न्यायमूर्ति हेमंत प्रच्छक ने अपने फैसले में कहा है, कि राहुल गाँधी पहले से ही भारतभर में 10 आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं। न्यायमूर्ति ने ये भी बताया है, कि राहुल को दोषी ठहराने के लिए निचली अदालत का आदेश सही और कानूनी था। निचली अदालत के निर्णय में कुछ भी परिवर्तन योग्य नहीं है।