संविधान से धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द हटाने की याचिका पर नवंबर में सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

By :Admin Published on : 21-Oct-2024
संविधान

संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द हटाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट अगले महीने नवंबर में सुनवाई करेगा। 

शुरू में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह शब्द संविधान की मूल भावना के अनुरूप हैं। 

हालांकि, बाद में कोर्ट ने कहा कि वह 18 नवंबर से शुरू हो रहे सप्ताह में विस्तार से याचिकाकर्ताओं की बात सुनेगा।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल 3 याचिकाओं में कहा गया है, कि 1976 में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से प्रस्तावना में ये शब्द जोड़े गए थे, तब इमरजेंसी लगी थी। 

विपक्ष के नेता जेल में थे, बिना किसी चर्चा के राजनीतिक कारणों से यह शब्द प्रस्तावना में डाल दिए गए थे।

धर्मनिरपेक्ष को लेकर याचिकाकर्ता के वकील ने क्या दलील दी है ?

याचिकाकर्ता बलराम सिंह के वकील विष्णु जैन और याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने यह भी कहा कि संविधान सभा ने काफी चर्चा के बाद यह तय किया था कि 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द प्रस्तावना का हिस्सा नहीं होगा।

इस पर 2 जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा- कि "क्या आप नहीं चाहते कि भारत धर्मनिरपेक्ष रहे? 

भारत में धर्मनिरपेक्षता फ्रांस में प्रचलित अवधारणा से अलग है। जब संविधान सभा की चर्चा चल रही थी, तब वह एक विदेशी विचार के बारे में थी। 

भारत में धर्मनिरपेक्षता अलग रूप में है। सुप्रीम कोर्ट भी कई फैसलों में धर्मनिरपेक्षता को संविधान का अभिन्न हिस्सा कह चुका है।"

ये भी पढ़ें: हरियाणा सरकार में किस समुदाय से कितने विधायकों को मंत्री पद मिला

जानिए सुब्रमण्यम स्वामी ने इसको लेकर क्या कहा ?

इस पर तीसरे याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि कोर्ट को मामले को विस्तार से सुनना चाहिए। यह देखना चाहिए कि प्रस्तावना को 26 नवंबर 1949 में संविधान सभा ने स्वीकार किया था, लेकिन 1976 में उसे बदल दिया गया। 

इस संशोधन के बाद भी प्रस्तावना में यही लिखा है कि उसे 26 नवंबर 1949 को स्वीकार किया गया। 

जजों ने इस बात पर सहमति जताई कि पुरानी तारीख को बरकरार रखते हुए इस तरह नई बातें जोड़ दिए जाने पर विचार की जरूरत है। 

समाजवाद शब्द हटाने को लेकर वकीलों ने क्या दलील दी है ?

सुनवाई के चलते यह बात भी उठी कि 'समाजवाद' एक किस्म की राजनीतिक विचारधारा है। हर पार्टी का नेता जनप्रतिनिधि बनने के बाद संविधान की शपथ लेता है। 

हर विचारधारा के व्यक्ति को समाजवादी होने की शपथ दिलाना गलत है। इस पर जस्टिस खन्ना ने कहा कि 'समाजवाद' को एक राजनीतिक विचारधारा की जगह इस तरह से भी देखा जा सकता है, कि संविधान समाज के हर वर्ग को एक समान अधिकार देता है।

Categories

Similar Posts