संसद सदन के कितने सत्र होते हैं और इनके क्या सिद्धांत हैं ?

By :Admin Published on : 20-Jul-2024
संसद

आज हम संसद में चलने वाले सत्रों के बारे में चर्चा करेंगे। मुख्य रूप से सदन में तीन सत्र वार्षिक तौर पर चलते हैं। पहला सत्र जनवरी के आखिरी से अप्रैल के अंत या मई की शुरुआत तक चलता है। 

इसको ग्रीष्मकालीन सत्र के नाम से भी जाना जाता है। इसमें एक अवकाश भी होता है जिससे कि समितियां बजटीय प्रस्तावों पर चर्चा की जा सके। 

सदन का दूसरा सत्र मानसून सत्र होता है, जो कि जुलाई के महीने से शुरू होकर अगस्त में समाप्त होता है। मानसून सत्र की समयावधि तीन सप्ताह तक होती है। 

वहीं, शीतकालीन सत्र की अगर हम बात करें तो यह सदन का वार्षिक तौर पर अंतिम सत्र होता है। जो कि नवंबर महीने से लेकर दिसंबर तक चलता है। 

आहूत

सदन के सत्र के क्षेत्र में संविधान के अनुच्छेद 85 में प्रावधान किया गया है। संसदीय भाषा में संसद सत्र के आह्वान करने को आहूत से संबोधित किया जाता है।  

सत्र को आहूत करने के लिए राष्ट्रपति समय समय पर संसद के हर एक सदन को सम्मन जारी करने का कार्य करता है। लेकिन, सदन के सत्रों का समयांतराल 6 माह से अधिक नहीं होना चाहिए। 

ये भी पढ़ें: संसद मानसून सत्र: लोकसभा स्पीकर द्वारा गठित कार्य मंत्रणा समिति में कौन-कौन शामिल हैं ?

स्थगन 

संसद की बैठक को स्थगन अथवा अनिश्चितकाल के लिए लोकसभा सदन के सत्र को स्थगित किया जा सकता है। स्थगन द्वारा बैठक को कुछ निश्चित समय जो कि कुछ घंटे, दिन अथवा सप्ताह के लिए निलंबित किया जा सकता है।   

सत्रावसान 

सत्रावसान द्वारा न केवल बैठक बल्कि सदन के सत्र को भी समाप्त किया जाता है।  सत्रावसान की कार्रवाई राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। सत्रावसान और फिर से इकट्ठे होने (Reassembly) तक के समय को अवकाश कहा जाता है। 

सत्रावसान का आशय सत्र का समाप्त होना है, न कि विघटन (लोकसभा के मामले में क्योंकि राज्यसभा भंग नहीं होती है)।

कोराम

कोरम या गणपूर्ति सदस्यों की न्यूनतम संख्या है, जिनकी उपस्थिति के चलते सदन का कार्य संपादित किया जाता है। यह प्रत्येक सदन में पीठासीन अधिकारी समेत कुल सदस्यों का दसवाँ हिस्सा होता है। 

अर्थात् किसी कार्य को करने के लिये लोकसभा में कम-से-कम 55 सदस्य तथा राज्यसभा में कम-से-कम 25 सदस्यों का होना अनिवार्य है।

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