राज्यपाल थावरचंद गहलोत के फैसले से जांच एजेंसियों के लिए सिद्धारमैया के खिलाफ मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) में जमीन आवंटन के आरोपों की जांच करने का रास्ता साफ हो गया है।
कर्नाटक सीएम के खिलाफ जांच की इस घोषणा के बाद भाजपा कांग्रेस के सिद्धारमैया से इस्तीफे की मांग कर रही है। कर्नाटक में 15 महीने पुरानी कांग्रेस सरकार के लिए यह पहली बड़ी चुनौती है।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती इस मामले में लाभार्थी हैं। इस वजह से मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों के केंद्र में आ गए हैं।
विपक्षी दल आरोप लगाते हैं कि मुख्यमंत्री ने दलित समुदाय की जमीन पर कब्जा किया और आरोप है कि यह घोटाला 3000 करोड़ रुपये का है। मुडा पर जाली दस्तावेज बनाने और करोड़ों रुपये की जमीन हासिल करने का आरोप है।
कर्नाटक में विपक्षी पार्टी भाजपा ने आरोप लगाया है, कि MUDA स्कैम 4,000 करोड़ रुपये से 5,000 करोड़ रुपये के दायरे में है। राज्य भाजपा प्रमुख बी. वाई. विजयेंद्र ने कहा कि सिद्धारमैया को पारदर्शी और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए इस्तीफा दे देना चाहिए।
उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने भी राज्यपाल के कदम को असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक बताया और दावा किया कि पूरी कांग्रेस पार्टी और राज्य सरकार सिद्धारमैया के साथ खड़ी है।
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उन्होंने कहा कि इंडिया गठबंधन ने मुख्यमंत्री के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त की है। ये झूठे आरोप हैं और हम इसे कानूनी और राजनीतिक रूप से लड़ेंगे।
बेंगलुरू में कांग्रेस कार्यकर्ताओं और कर्नाटक प्रदेश कुरुबर संघ के सदस्यों ने राज्यपाल को हटाने की मांग को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया।
राज्यपाल गहलोत के खिलाफ नारे लगाते हुए, उन्होंने उनके पुतले जलाए और तख्तियां लहराईं, जिन पर लिखा था कि राज्यपाल को हटाएं, राज्य को बचाएं।
राज्यपाल ने कहा था कि उनका आदेश एक तटस्थ, उद्देश्यपूर्ण और गैर-पक्षपातपूर्ण जांच करने के लिए आवश्यक था। उन्होंने कहा कि वह प्रथम दृष्टया संतुष्ट हैं कि आरोप और बाकी सबूत अपराधों का खुलासा करते हैं।
गहलोत ने मुख्यमंत्री को अपना कारण बताओ नोटिस वापस लेने और अभियोजन की मंजूरी की मांग करने वाले आवेदन को खारिज करने की सलाह देने वाले मंत्रिपरिषद के फैसले को भी तर्कहीन करार दिया।