केंद्र सरकार ने हाल ही में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन कर एक राष्ट्र एक चुनाव व्यवस्था के लिए कवायद शुरू की है।
हालांकि देश में पहले भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ होते रहे हैं। दिसंबर 1951 और फरवरी 1952 के बीच स्वतंत्र भारत में लोकसभा और विधानसभाओं दोनों के लिए पहला चुनाव हुआ था।
केंद्र सरकार ने हाल ही में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन कर 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' व्यवस्था के लिए कवायद शुरू की है। हालांकि, देश में पहले भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ होते रहे हैं।
दिसंबर 1951 और फरवरी 1952 के बीच, स्वतंत्र भारत में लोकसभा और विधानसभाओं दोनों के लिए पहला चुनाव हुआ था। यह पिछली सदी के सातवें दशक के अंत तक जारी रहा।
जब अस्थिर गैर-कांग्रेसी राज्य सरकारें गिरने लगी, मध्यावधि चुनाव हुए तो संयुक्त चुनाव व्यवस्था का क्रम टूटता रहा।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1970 में लोकसभा भंग करवा दी और 1971 में निर्धारित समय से 15 महीने पहले आम चुनाव कराने का आह्वान किया। यह पहली बार था जब स्वतंत्र भारत में लोकसभा भंग हुई थी।
चुनाव मूलरूप से 1972 के लिए निर्धारित थे, लेकिन अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रही इंदिरा गांधी जल्द से जल्द पूर्ण सत्ता चाहती थीं। उनके फैसले ने राज्य विधानसभा चुनावों को आम चुनाव से पूरी तरह अलग कर दिया।
राम नाथ कोविन्द के नेतृत्व वाली उच्च स्तरीय समिति ने एक राष्ट्र, एक चुनाव व्यवस्था को लेकर 62 राजनीतिक दलों से विचार विमर्श किया था, जिनमें से 47 ने जवाब दिया। इनमें भाजपा सहित 32 राजनीतिक दलों ने एक राष्ट्र, एक चुनाव की अवधारणा का समर्थन किया।
हालांकि, कांग्रेस सहित 15 राजनीतिक दलों ने इस विचार का कड़ा विरोध किया और दावा किया कि यह संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन होगा।