लोकसभा के 42 सांसदों की संसद सदस्यता 1988 से अबतक के दौरान रद्द की जा चुकी है

By :Admin Published on : 09-May-2023
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आज हम आपको 1988 से अब तक 42 सांसदों के बारे में बताएंगे जिनकी संसद सदस्यता रद्द की जा चुकी है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 102 (1) और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 विगत दिनों चर्चा का केंद्र बिंदु बन रहा है। वह इसलिए क्योंकि इस अधिनियिम के अंतर्गत 1988 से अब तक 42 सांसदों की सदस्यता रद्द हो चुकी है। 14वीं लोकसभा के सर्वाधिक 19 सांसद इनमें शम्मिलित हैं।


कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को विगत दिनों पूर्व मोदी सरनेम से जुड़े मामले में सूरत कोर्ट द्वारा सजा सुनाई थी। जिसके उपरांत उनको अपनी लोकसभा की सदस्यता से भी हाथ धोना पड़ा था। ऐसी स्थिति में बीते दिनों भारतीय संविधान का अनुच्छेद 102 (1) एवं जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 चर्चाओं का केंद्र रहा है। बतादें, कि इस अधिनियिम के अंतर्गत 1988 से अब तक 42 सांसदों की सदस्यता जा चुकी है। 14वीं लोकसभा के सर्वाधिक 19 सांसद शम्मिलित हैं।


नेताओं की संसद सदस्यता किस वजह से गई है 


वास्तविकता में इन सांसदों की अपात्रता पर निर्णय राजनीतिक निष्ठा में परिवर्तन, एक सांसद के लिए अशोभनीय आचरण करना। साथ ही, दो वर्ष या उससे ज्यादा की जेल की सजा वाले अपराधों के लिए अदालत की तरफ से दोषी करार दिए जाने के बाद विभिन्न आधारों पर लिया गया है। जिन सांसदों की सदस्यता हाल ही में गई है, उनमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी, NCP नेता मोहम्मद फैजल एवं बसपा नेता अफजल अंसारी शम्मिलित हैं। अदालतों की तरफ से उन्हें दो वर्ष से ज्यादा की सजा के उपरांत जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधान इन पर शुरू हुए हैं।


राहुल गांधी ने गुजरात हाई कोर्ट में दी फैसले को चुनौती


बतादें, कि लोकसभा में लक्ष्यदीप का प्रतिनिधित्व करने वाले फैजल की अयोग्यता को केरल उच्च न्यायालय से हत्या की कोशिश के मामले में उनकी सजा पर रोक लगाने के उपरांत रद्द कर दिया गया था। तो उधर राहुल गांधी ने मोदी सरनेम से जुड़े आपराधिक मानहानि के मामले में सहूलियत पाने के लिए गुजरात उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है, जिसमें सूरत की एक अदालत की तरफ से उन्हें दो वर्ष की जेल की सजा सुनाई थी।


सर्वप्रथम 1985 में इस नेता की संसद सदस्यता गई थी  


जानकारी के लिए बतादें, कि 1985 में दलबदल विरोधी कानून जारी होने के उपरांत लोकसभा के एक सदस्य को अयोग्य घोषित करने का पहला मामला कांग्रेस के सदस्य लालदुहोमा का था। जिन्होंने मिजो नेशनल यूनियन के उम्मीदवार के रूप में मिजोरम विधानसभा चुनाव के लिए अपना नामांकन दाखिल किया था। नौवीं लोकसभा में जब तत्कालीन जनता दल के नेता वीपी सिंह ने गठबंधन सरकार बनाई थी, तब नौ लोकसभा सदस्यों को दलबदल विरोधी कानून का उल्लंघन करने पर अयोग्य घोषित कर दिया गया था।


केवल 14वीं लोकसभा के अंतर्गत 19 सांसदों पर हुई कार्रवाई


इसी कड़ी में 14वीं लोकसभा में 10 सदस्यों को अपनी संसद सदस्यता से हाथ धोना पड़ा था। जुलाई 2008 में यूपीए-1 सरकार द्वारा विश्वास मत के चलते क्रॉस मतदान के लिए 9 सदस्यों को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी थी। साथ ही, 2005 में भाजपा के छह सदस्यों, बसपा के दो और कांग्रेस और राजद के एक-एक सदस्य को 'कैश फॉर क्वेश्चन' घोटाले को लेकर लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया था। बसपा के एक राज्यसभा सदस्य को भी सदन से निष्कासित कर दिया गया था।


चार सदस्य 10वीं लोकसभा में अयोग्य घोषित किए गए  


साथ ही, 10वीं लोकसभा के अंतर्गत तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव द्वारा गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया गया था। इस वक्त चार सदस्यों को दल-बदल विरोधी कानून के अंतर्गत सदन से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। दल-बदल-विरोधी कानून के अंतर्गत राज्यसभा सदस्य को अयोग्य घोषित करने का अपना भी इतिहास रहा है। इसके अंतर्गत मुफ्ती मोहम्मद सईद (1989), सत्यपाल मलिक (1989), शरद यादव (2017) और अली अनवर (2017) को अपनी सदस्यता से हाथ धोना पड़ा है।


शिबू सोरेन व जया बच्चन की सदस्यता भी रद्द हुई थी  


इसके साथ ही झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन एवं समाजवादी पार्टी की सदस्य जया बच्चन को वर्ष 2001 और 2006 में लाभ का पद धारण करने के लिए राज्यसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। जानकारी के लिए बतादें कि सोरेन जहां झारखंड क्षेत्र स्वायत्त परिषद के अध्यक्ष और जया बच्चन उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद की अध्यक्ष थी। इसके साथ ही चारा घोटाले में दोषी करार दिए जाने के उपरांत राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद एवं जद (यू) सदस्य जगदीश शर्मा को लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।

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