यूपी में लोकसभा चुनाव से पहले आए नगर निकाय चुनाव ने सियासी दांव पेंच चलने लगे हैं। नगर निकाय चुनावों ने सभी सियासी दलों की परेशानियां बढ़ा दी है। साथ ही, सभी राजनैतिक दल अपनी अपनी विचारधाराओं एवं कार्य योजनाओं को जनता के समक्ष प्रकट कर रहे हैं। इस वक्त समाजवादी पार्टी, बीएसपी, कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी की भी मश्किलें बढ़ गई हैं।
देश में लोकसभा चुनाव से पूर्व आ रहे यूपी निकाय चुनाव में समस्त राजनैतिक दलों की इज्जत दांव पर गई है। विगत चुनावों के समय नगर निगम महापौर में बीजेपी ने 16 में 14 एवं बहुजन समाज पार्टी ने 2 सीटों पर फतह हांसिल की थी। वहीं दो स्थानों पर बहुजन समाज पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी। तो उधर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का बिल्कुल पत्ता साफ था।
वर्तमान सत्ता में उपस्थित बीजेपी को नगर निकाय चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करके स्वयं की स्थिति को मजबूत रखने या सर्वोत्तम स्थिर रखने की चुनौती हैं। साथ ही, दूसरी तरफ अन्य दलों हेतु पूर्व से बेहतर प्रदर्शन करने की चुनौती है। प्रदेश में मतदाता सूची का आखिरी प्रकाशन एक अप्रैल से किया जाएगा। समस्त राजनैतिक दल नगर निकाय के इस चुनाव को लोकसभा चुनाव का प्रतिबिंब मान रहे हैं। विगत चुनाव में विशेष बात यह भी रही कि कांग्रेस का प्रदर्शन मुख्य विपक्षी दल सपा से काफी सही रहा था। साथ ही, छह सीटों पर कांग्रेस ने दूसरा स्थान प्राप्त किया था।
पिछली बार हुए चुनावों के परिणाम इस तरह थे
वाराणसी, सहारनपुर,कानपुर नगर, गाजियाबाद, मथुरा, मुरादाबाद में कांग्रेस पार्टी ने बसपा और सपा को पीछे पछाड़ दिया था। साथ ही, सपा पांच नगरों में प्रयागराज, बरेली, लखनऊ, अयोध्या और गोरखपुर में दूसरे स्थान पर रही थी। फिरोजाबाद में एआईएमआईएम प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहा था। तो वहीं मेरठ और अलीगढ़ में बसपा को विजय प्राप्त हुई एवं बीजेपी दूसरे स्थान पर रही थी। आपको बतादें कि पिछली बार नगर पालिका के 198 और नगर पंचायतों की 438 सीटों पर अध्यक्ष पद हेतु चुनाव हुआ था।
अगर हम बीजेपी की बात करें तो इसने नगर पालिका परिषद अध्यक्ष की 70 एवं नगर पंचायत अध्यक्ष की 100 सीटें हांसिल की थीं। वहीं समाजवादी पार्टी के 45, बहुजन समाज पार्टी के 29 और कांग्रेस के नौ नगर पालिका चेयरमैन बने थे। अगर हम नगर पंचायतों की बात करें तो सपा के 83, बसपा के 45 एवं कांग्रेस के 17 अध्यक्ष बने थे। इस बार समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन है। अब ऐसी स्थिति में समाजवादी पार्टी अपनी फतह का समीकरण काफी अच्छा करने की तैयारियों में जुटी हुई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश को जाट बाहुल्य क्षेत्र है, इसलिए रालोद की वजह से समाजवादी को जाट वोट मिलने से काफी फायदा मिलेगा। पिछली बार बसपा ने दो सीटों पर अवश्य फतह हांसिल की थी। परंतु, कुछ समय उपरांत मेरठ से महापौर सुनीता वर्मा बहुजन समाज पार्टी का दामन छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल हो गईं।
पहले धोखा खाकर अब बसपा स्थिर प्रत्याशी के चयन पर विशेष ध्यान दे रही है। कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी सर्वाधिक सीटों पर उपविजेता थे। इस वजह से कांग्रेस इस बार अपनी पुनः वापसी करने के लिए भरकस प्रयासों में लगी हुई है। राजनैतिक दलों का केंद्र बिंदु निर्दलीय प्रत्याशियों पर भी खूब रहेगा। 2017 के चुनाव में नगर पालिका अध्यक्ष पद पर 43 और नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर 182 निर्दलीय विजयी हुए थे।