किसान मंच एसकेएम (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा ने सभी फसलों पर सी2+50% के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के कानूनी अधिकार, कर्ज माफी और अन्य मांगों के लिए संघर्ष को और तीव्र करने के लिए 15 अगस्त को संपूर्ण भारत में ट्रैक्टर मार्च निकालने का निर्णय किया है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, किसान मंचों ने अगस्त और सितंबर में अन्य कार्यवाहियां करने का भी निर्णय लिया है। एमएसपी के मुद्दे पर सोमवार को दिल्ली में आयोजित सम्मेलन के बाद लिए गए कई निर्णयों में से एक यह है कि किसान केंद्र सरकार के पुतले और 1 अगस्त के नए आपराधिक कानूनों की प्रतियां जलाएंगे।
कार्यकर्ताओं ने 31 अगस्त को बड़ी भीड़ जुटाकर पंजाब और हरियाणा की सीमाओं शंभू और खनौरी में 200 दिन मनाने का निर्णय लिया है। वे 1 सितंबर को यूपी में रैली करेंगे। हरियाणा में दो किसान महापंचायतें- 15 सितंबर को जींद में और 22 सितंबर को पिपली में भी योजना बनाई गई है।
किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल ने इस मिथक को खारिज किया कि एमएसपी की कानूनी गारंटी से सरकार पर राजकोषीय भार बढ़ेगा। उन्होंने विपक्ष के सभी नेताओं, खासकर उन राजनीतिक दलों से, जिन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव घोषणापत्र में एमएसपी की कानूनी गारंटी का वादा किया था, संसद में निजी सदस्यों के विधेयक पेश करने का आग्रह किया।
वहीं, कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने कहा कि दुनिया भर में एक ठोस प्रयास चल रहा है, कि छोटे और सीमांत किसानों की सीमित आबादी को कृषि से बाहर कर दिया जाए। शर्मा ने कहा कि हॉलैंड से लेकर इंग्लैंड, न्यूजीलैंड से लेकर भारत तक, 'किसान नहीं तो भोजन नहीं' का नारा दुनिया भर के सभी देशों के लिए प्रासंगिक है।
आगे उन्होंने कहा कि यह विचार कि कृषि उत्पादन बढ़ने से कृषि आय अपने आप बढ़ जाएगी, सही नहीं है क्योंकि "किसानों को श्रम और इनपुट के मूल्य नहीं मिल रहे हैं, जैसा कि तेजी से बढ़ती उपज में निवेश किया जाता है।"
डॉ. प्रकाश, जो पहले कर्नाटक कृषि विभाग में थे उनका कहना है, कि एमएसपी की कानूनी गारंटी किसानों पर राजकोषीय बोझ नहीं बढ़ाएगी, जैसा कि दावा किया जा रहा है।"
केरल के पीटी जॉन ने कहा कि दूसरे किसान आंदोलन ने वास्तविक काफी हलचल पैदा कर दी है और लोकसभा चुनावों में गति निर्धारित कर दी है। जॉन ने कहा, "एमएसपी दया नहीं बल्कि किसान का अधिकार और दावा है।"
मेवात के जफर हसन ने कहा कि किसानों के विरोध का सबसे बड़ा परिणाम यह है, कि इसने किसानों को अपने-अपने धर्मों से ऊपर उठकर एकजुट होने में सहायता की है।
हरियाणा के अभिमन्यु कोहर ने कहा कि इस आंदोलन की सबसे बड़ी सफलता यह है, कि किसान और मजदूर एक बड़ी ताकत के रूप में उभरे हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।