हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 काफी रोचकबन चुका है, क्योंकि तीन गठबंधन चुनावी मैदान में हाथ आजमा रहे हैं। भाजपा के अलावा आम आदमी पार्टी और निर्दलीय भी सभी 90 सीटों पर अपनी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।
कांग्रेस 90 में से 89 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिसमें से कांग्रेस ने एक सीट सीपीएम को गठबंधन के अंतर्गत भिवानी सीट दी है।
दूसरी तरफ जन नायक जनता पार्टी का चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन हो चुका है। जेजेपी 70 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, तो एएसपी 20 सीटों पर गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रही है।
वहीं, अगर हम तीसरे गठबंधन की बात करें तो तीसरा गठबंधन इंडियन नेशनल लोकदल और बहुजन समाज पार्टी का है। इनेलो 53 सीटों पर तो बसपा 37 सीटों पर गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि, मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में ही दिख रहा है।
फिर भी इनकी हार-जीत में जेजेपी-एएसपी, इनेलो-बसपा गठबंधनों के साथ आप और निर्दलीय उम्मीदवार खास भूमिका निभाएंगे। अब देखना यह है, कि विपक्षी वोटों के बंटवारे से भाजपा को लाभ होता है या कांग्रेस के पाले में जनता एकजुट होती है।
भाजपा के लिए हरियाणा चुनाव साख बचाने का सवाल है। अगर वो हार गई तो देश में ये मैसेज चला जाएगा कि भाजपा का स्वर्णिम युग अब ढलान पर है।
विपक्ष मजबूत हो जाएगा और उसके गठबंधन में शामिल साथी दल भी उससे दूर होने लगेंगे। आगे आने वाले चुनावों के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल कमजोर हो जाएगा।
इससे भी बढ़कर देश पर इसका असर पड़ेगा। केंद्र सरकार कमजोर हो जाएगी और बड़े फैसले लेने से बचेगी। साथ ही, मध्यावधी चुनाव का खतरा भी बढ़ जाएगा।
कारण यह है, कि अभी केंद्र में भाजपा गठबंधन सहयोगियों के कारण सत्ता में है। लोकसभा चुनाव में पुराना प्रदर्शन नहीं दोहरा पाने के बाद हरियाणा में हार भाजपा के लिए बहुत बड़ा झटका साबित हो सकती है।
कांग्रेस लोकसभा चुनाव परिणामों के उपरांत से काफी जोश और उल्लास में है। हरियाणा को तो वो जीता हुआ मानकर चल रही है। जम्मू-कश्मीर में तो वो नेशनल कांफ्रेंस की जूनियर पार्टनर बनकर मैदान में है।
हरियाणा में हार या जीत ही कांग्रेस की प्रतिष्ठा को निर्धारित करेगा। अगर वह जीत गई तो विपक्षी गठबंधन इंडिया एकजुट होकर आगे भी मोदी सरकार की परेशानी बढ़ाएगा और अगर हार गई तो फिर उससे अन्य दल पीछा छुड़ाएंगे।
आप ने तो पहले ही किनारा कर लिया है। इसके साथ ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए भी ये करो और मरो वाला चुनाव है। अगर कांग्रेस हार गई तो उनके पास रिटायर होने के अलावा और कोई चारा नहीं बचेगा। वहीं, अगर जीत गई तो मुख्यमंत्री की कुर्सी के सबसे बड़े दावेदार वो ही रहेंगे।
दुष्यंत चौटाला और अभय सिंह चौटाला के लिए भी ये चुनाव करो या मरो की तरह है। दुष्यंत चौटाला पिछले पांच साल तक सत्ता में रहकर मजबूत हो चले थे, लेकिन भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद उनके अपने सहयोगी भी उनका साथ छोड़ गए। अगर इस चुनाव में वो 8-10 सीटें भी नहीं जीत पाए तो उनके लिए पार्टी बचाए रखना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
वहीं, उनके चाचा अभय सिंह चौटाला के लिए भी ये चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। अगर इस चुनाव में इनेलो अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई तो उसका भविष्य अंधकार में चला जाएगा।
इस चुनाव में हार के बाद उसे प्रत्याशी भी आगे के चुनावों में उतारना मुश्किल हो जाएगा। हालांकि, सत्ता की इस लड़ाई में खिलाड़ियों के साथ-साथ कई परिवारों के सदस्य भी आमने-सामने हैं।