महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाविकास आघाड़ी गठबंधन के लिए ध्रुवीकरण के भाजपा के दांव से निपटना भी काफी बड़ी चुनौती है। खासकर इस गठबंधन का अघोषित नेतृत्व कर रही कांग्रेस भी संशय में है।
लोकसभा चुनाव में सफलता का आधार बने कांग्रेस के सामाजिक समीकरणों को ध्वस्त करने के लिए भाजपा ध्रुवीकरण को एक महत्वपूर्ण चुनावी फैक्टर बनाने की कोशिश नहीं छोड़ेगी।
इस बात को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने अपने नेताओं के साथ सभी सहयोगी दलों को इस बारे में आगाह करते हुए चुनाव प्रचार अभियान में महायुति के इस सियासी ट्रैप में नहीं आने की सलाह दी है।
सीट बंटवारे की रस्साकशी के बीच परवान चढ़ रहे चुनाव अभियान में जा रहे केंद्रीय और प्रदेश स्तर के बहुत सारे नेताओं को कांग्रेस की तरफ से दिशा-निर्देश दिए गए हैं, कि चुनावी माहौल की गरमागर्मी में भी ऐसी कोई टीका-टिप्पणी न की जाए जिससे ध्रुवीकरण तीव्र हो।
महाराष्ट्र चुनाव से संबंधित पार्टी रणनीतिकारों के मुताबिक वैसे तो पिछले कुछ वर्षों में यह कांग्रेस के सामान्य चुनावी सर्तकता प्रोटोकॉल का हिस्सा बन गया है।
मगर कांग्रेस नेताओं के मुताबिक, पिछले दो-तीन महीने के दौरान अमरावती से लेकर नासिक आदि में हुए घटनाक्रमों से साफ है, कि भाजपा चुनाव में ध्रुवीकरण के लिए हर संभव दांव चलती रहेगी।
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एमआइएमआइएम के नेता असदुद्दीन औवेसी के समर्थकों को संवेदनशील माहौल में भी मुंबई में बाइक रैली निकालने की इजाजत देने के शिंदे सरकार के कदम को भी कांग्रेस इसी दांव का हिस्सा मान रही है।
पार्टी रणनीतिकारों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्तर पर महाराष्ट्र में जाकर ''''बंटेंगे तो कटेंगे'''' का खुला अनुमोदन इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि कांग्रेस के सामाजिक समीकरण पर निशाना साधने के लिए ध्रुवीकरण का हथियार चलाने में भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
महाराष्ट्र के प्रभावशाली मराठा समुदाय के साथ दलित-आदिवासी तथा अल्पसंख्यक वर्ग का 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर झुकाव का ही नतीजा रहा कि 13 लोकसभा सीट जीतकर राज्य में वह सबसे बड़ी पार्टी बन गई।
शरद पवार की एनसीपी तथा उद्धव ठाकरे की शिवसेना यूबीटी को भी इसका फायदा मिला। कांग्रेस की चिंता है कि विधानसभा चुनाव को मराठा बनाम ओबीसी बनाने का भाजपा का दांव चल गया तो पिछले चुनाव में साथ आया ओबीसी का एक हिस्सा भी कांग्रेस से अलग हो सकता है।