राजनीति के जानकारों की मानें तो भले ही AAP का हरियाणा में पिछले विधानसभा चुनावों में खास रिकॉर्ड नहीं रहा है। लेकिन, इस बार वह अपने वोट बेस में बढ़ोत्तरी कर सकती है।
उसकी तरफ गया एक-एक वोट नतीजों को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। हालांकि, हरियाणा में ज्यादातर सीटों पर मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही होने की संभावना है।
बतादें, कि इसके अतिरिक्त दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी जैसे छोटे-छोटे दल भी कुछ सीमा तक प्रभाव रखते हैं। लेकिन वे भी शायद ही मुख्य लड़ाई में नजर आएं।
इस तरह हरियाणा में AAP एक महत्वपूर्ण फैक्टर तो है, लेकिन मुकाबले को त्रिकोणीय करने की हद तक उसकी ताकत नजर नहीं आ रही है।
हरियाणा चुनावों में आम आदमी पार्टी के पूरी ताकत से उतरने से कांग्रेस को नुकसान पहुंच सकता है। पड़ोसी राज्य पंजाब में सरकार बनाने के बाद से ही AAP के हौसले बुलंद हैं और अपने नेता अरविंद केजरीवाल के जेल से रिहा होने के बाद उसके कार्यकर्ता और भी ज्यादा जोश में नजर आ रहे हैं।
साथ ही दिल्ली के सीएम की पत्नी सुनीता केजरीवाल के साथ-साथ पार्टी के बाकी नेता भी प्रचार-प्रसार में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं।
सियासी पंडितों का मानना है कि AAP के प्रचार अभियान को जितनी गति मिलेगी, बीजेपी विरोधी वोट उतना ही बंटेगा जिससे कांग्रेस को नुकसान और भगवा दल को फायदा हो सकता है।
दिल्ली से लेकर पंजाब तक, गोवा से गुजरात तक, हर चुनाव में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस की कीमत पर ही अपनी जमीन तैयार की है। दिल्ली और पंजाब में पार्टी ने प्रचंड जीत हासिल करते हुए कांग्रेस को जहां सत्ता से बाहर कर दिया, वहीं गोवा और गुजरात में उसकी दुर्गति का बड़ा कारण बनी।
दिल्ली का उदाहरण लें तो 2020 के विधानसभा चुनावों में AAP को 70 में से 62 और बीजेपी को 8 सीटें मिली थीं, जबकि 2013 तक सूबे की सत्ता में रही कांग्रेस लगातार दूसरी बार शून्य पर सिमट गई थी।
वहीं, 2022 के पंजाब चुनावों में जहां AAP 117 में से 92 सीटें जीतकर सत्ता में आई, वहीं मात्र 18 सीटें लाकर कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। बीजेपी हालांकि 2 ही सीटें जीत पाई लेकिन उसका वोट प्रतिशत यहां भी बढ़ा।